कैलाश मानसरोवर यात्रा
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं। प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख है कि हिमालय जैसा कोई दूसरा पर्वत नहीं है, यहाँ भगवान का निवास है क्योंकि यहां कैलाश और मानसरोवर स्थित हैं।
भारत सरकार के सौजन्य से हर वर्ष मई-जून में सैकड़ों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं। इसके लिए उन्हें भारत की सीमा लांघकर चीन में प्रवेश करना पड़ता है, क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 20 हजार फीट है। इसलिए तीर्थयात्रियों को कई पर्वत-ऋंखलाएं पार करनी पड़ती हैं। यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है हिन्दू धर्मं के अनुसार कहते है की जिसको भोले बाबा का बुलावा होता है वही इस यात्रा को कर सकता है सामान्यतया यह यात्रा २८ दिन में पूरी होती है यात्रा का कठिन भाग चीन में है भारतीय भू भाग में चोथे दिन से पैदल यात्रा आरम्भ होती है भारतीय सीमा में कुमाउ मंडल विकास निगम इस यात्रा को संपन्न कराती है
कैलाश परिक्रमा
कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यदि आप इसकी परिक्रमा करना चाहते हैं, तो यह परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता है। परिक्रमा के दौरान आपको एक किलोमीटर परिधि वाला गौरीकुंड भी मिलेगा। यह कुंड हमेशा बर्फ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। मानसरोवर यह पवित्र झील समुद्र तल से लगभग 4 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है और लगभग 320 बर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। यहीं से एशिया की चार प्रमुख नदियां-ब्रह्मपुत्र, करनाली, सिंधु और सतलज निकलती हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है। जनश्रुतियां हैं कि ब्रह्मा ने अपने मन-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रात:काल 3-5 बजे) में देवता गण यहां स्नान करते हैं। शक्त ग्रंथ के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है।
गर्मी के दिनों में जब मानसरोवर की बर्फ पिघलती है, तो एक प्रकार की आवाज भी सुनाई देती है। श्रद्धालु मानते हैं कि यह मृदंग की आवाज है। मान्यता यह भी है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले, तो वह रुद्रलोक पहुंच सकता है।
राक्षस ताल
मानसरोवर के बाद आप राक्षस ताल की यात्रा करेंगे। यह लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। प्रचलित है कि रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोड़ती है। हिंदू के अलावा, बौद्ध और जैन धर्म में भी कैलाश मानसरोवर को पवित्र तीर्थस्थान के रूप में देखा जाता है। बौद्ध समुदाय कैलाश पर्वत को कांग रिनपोचे पर्वत भी कहते हैं। उनका मानना है कि यहां उन्हें आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि मानसरोवर के पास ही भगवान बुद्ध महारानी माया के गर्भ में आये।
जैन धर्म में कैलाश को अष्टपद पर्वत कहा जाता है। जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि जैन धर्म गुरु ऋषभनाथ को यहीं पर आध्यात्मिक ज्ञान मिला था।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने से पहले तीर्थयात्रियों को कुछ बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। उन्हें किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं होनी चाहिए। चूंकि यह तीर्थस्थान चीन की सीमा में स्थित है, इसलिए उन्हें विदेश मंत्रालय में अपना प्रार्थनापत्र देना होता है। चीन से वीजा मिलने के बाद ही आप कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकते हैं। दिल्ली के सरकारी अस्पताल में दो दिन तक आपके फिजिकल फिटनेस की जांच की जाती है। जांच में फिट होने के बाद ही आपको इस यात्रा की अनुमति मिल पाती है। दरअसल, कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान आपको 20 हजार फीट की ऊंचाई तक भी जाना पड़ सकता है। इसी कारण इस यात्रा को धार्मिक यात्रा के साथ ही प्राकृतिक रूप से प्रकर्ति से रूबरू व प्राकृतिक सौंदर्य को जानने के लिए भी जाना जाता है
Source : Dainik Jagran
Photo Courtesy: Bhupendra Bisht(Haldwani)
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