पवित्र कैलास-मानसरोवर की यात्रा

Discussion and information about Tourism in and around Haldwani as a Base for and Gateway to Kumaon-Himalayas destinations. Covers Haldwani, Lal Kuan, Chhoti Haldwani, Bhim Tal, Bhowali, Nainital, Kathgodam, Sat Tal, Naukuchiya Tal, etc., excursions.

पवित्र कैलास-मानसरोवर की यात्रा

Postby dinjos12 on Mon Apr 05, 2010 2:16 am

कैलास मानसरोवर तीर्थयात्रा केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं बल्कि अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी आस्था व श्रद्धा का पावन केन्द्र है। सदियों से इस अदभुद यात्रा के प्रति लोगो का इतना लगाव है की कहते है कि जब बाबा का बुलावा होगा तभी यात्रा होगी वास्तव में कितने लोग यात्रा के दौरान मार्ग से ही लौटने को मजवूर होते है दिल्ली से लगभग 865 किलोमीटर की यह यात्रा सदियों से चल रही है। आलौकिक अनुभूति कराने वाली इस यात्रा में प्रतिवर्ष पूरे भारत वर्ष से लोग शामिल होते हैं।

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जून से शुरू होने वाली कैलास मानसरोवर यात्रा की तैयारी छह महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा इसका संचालन किया जाता है।
30 दिन की इस यात्रा की व्यवस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा की जाती है। यह यात्रा अत्यधिक कठिन मार्ग और लंबी दूरी कि होने के बाद भी तीर्थयात्री हिमालय की श्रृंखलाबद्ध चोटियों और नैसर्गिक सौन्दर्य का लुत्फ उठाते हुए आगे बढ़ते रहते हैं।

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मानसरोवर यात्रा वर्ष 1962 से 1980 तक बंद रही। इसके बाद वर्ष 1981 में जब इस यात्रा को पुन: शुरू किया गया तो देशभर में इसका स्वागत हुआ। आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मारी जाने वाली यह यात्रा अत्यंत रमणीक है।

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हर वर्ष कि तरह इस वर्ष एक जून से कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू हो रही है। इसमें प्रतिवर्ष की तरह 16 दल जायेंगे। प्रत्येक दल में अधिकतम 44 यात्री होते हैं। भारत सरकार की ओर एक उच्च अधिकारी को प्रत्येक दल में लाइजन आफिसर के रूप में भेजा जाता है। 18 वर्ष से अधिक उम्र का भारत का नागरिक ही इस यात्रा में शामिल हो सकता है।
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30 दिन की इस यात्रा में तीन दिन दिल्ली में रुकना होता है। स्वास्थ्य परीक्षण के बाद ही यात्रा में जाने की अनुमति मिलती है। दिल्ली से यात्रा शुरू करने के बाद कुमाऊं में यात्री केएमवीएन के पर्यटक आवासगृहों में ठहरते हैं।

रास्ते में मंदिरों के दर्शन करते हुए बम-भोले के जयकारों के साथ आगे बढ़ते रहते हैं। काठगोदाम, अल्मोड़ा, चौकोड़ी, धारचूला, बूंदी, गुंजी, कालापानी, नावीढांग, लिपुलेख, ताकलाकोट से दारचिन, डेराफू व कुगूमठ, जुटुलपुक, दारचिन व छ्युगोम्पा, कुगुमठ से कैलाश की परिक्रमा की तैयारी शुरू हो जाती है।
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22 वें दिन दारचिन से छयुगोम्पा होकर ताकलाकोट में दोनों दल एक होकर यज्ञ, स्नान के बाद दोपहर में राकसताल और पीछे कैलाश के दर्शन करते हैं। कैलाश की परिक्रमा में 55 किलोमीटर चलना पड़ता है। 23 वें दिन ताकलकोट से खोजरनाथ और 25 किलोमीटर दूर करनाली घाटी में स्थित खोजरनाथ मठ के दर्शन कराये जाते हैं। यहां पर बुद्ध मंदिर है। इसमें राम-लक्ष्मण व सीता की मूर्तियां विद्यमान हैं। 24 वें दिन ताकलकोट से लीपुपास व नावीढांग से कालापानी को वापस लौटते हैं। फिर गुंजी, बूंदी, धारचूला होते हुए वापस आ जाते हैं।
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मानसरोवर के उत्तर में कैलास पर्वत माला और कैलाश शिखर है। दक्षिण में गुरला पर्वत माला और गुरला शिखर है। इस क्षेत्र से उत्तर की चार बड़ी नदियां करनाली, सतलज, ब्रह्मपुत्र, सिन्ध निकलती है। पश्चिम तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत और मानसरोवर भारतीय मन से कभी अलग नहीं हुये। इस मानसरोवर के कारण ही कुमाऊं को मानस खंड कहा जाना प्रारंभ हुआ। मान्यता के अनुसार मानसरोवर को ब्रह्मा के मस्तिष्क से रचा हुआ माना जाता है। इसकी खोज राज गुरला मान्धाता ने की। जिनके नाम से सर्वाधिक ऊंचा पर्वत गुरला है।

source : jagran
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