कुमांऊनी होली
एक मान्यता के अनुसार ब्रज प्रदेश के बाद होली की मस्ती सबसे ज्यादा कुमांऊ अंचल में होती है समूचे उत्तराखंड में होली से बड़ा उत्सव कोई नहीं है होली मस्ती सदभावना व रंगों का त्यौहार है | आज दुनिया भर में सभी जगह होली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. लेकिन कुमाऊंनी होली का अपना एक अलग ही रंग है, पूरे विश्व में इस होली की अलग पहचान है. कुमांऊ में होली एक दिन का त्यौहार नहीं बल्कि कई दिनों तक चलने वाला त्यौहार है. बसंत पंचमी के दिन से ही होली गाने का सिलसिला आरंभ हो जाता है इस दौरान होली के साथ संगीत भी जुड़ा है बिना संगीत के कुमांऊनी होली की कल्पना भी मुश्किल है. हारमोनियम तबला ढोलक आदि यंत्रो के साथ होली गाई जाती है संगीत के साथ साथ होली से जुड़े गीतों में सामुहिक अभिव्यक्ति भी जुडी है. इसमें सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दे भी हैं और तात्कालिक परिस्थितियों का चित्रण भी होता है
महा शिव रात्रि के दिन से होली की बैठक आरम्भ हो जाती है जो होली की एकादशी तक चलती है होली की एकादशी के दिन रंग पड़ने के साथ ही होली में मस्त होल्यार पूरी मस्ती में सारे गाँव में घर घर जाकर होली गाते है कुमांऊनी होली एक पर्व ही नहीं है बल्कि इसकी एक सांस्कृतिक विशेषता है. यहाँ की होली मुख्यत: तीन तरह की होती है.
1. बैठकी होली
बैठकी होली का आरम्भ शिव रात्रि के दिन से आरम्भ होता है इस दिन सभी लोग शिवमंदिर में इकठा होते है यहाँ से होली आरम्भ होती है फिर लोग अपने -२ घरो में होली का आयोजन करते है घर बाखली के आगन (घरो का समूह) व मंदिर प्रागन में धूनी जलाकर देर रत तक होली गायन होता है ढोलको की धम धम व मंजीरो की छम छम से समां बध जाता है
3. खड़ी होली.
फाल्गुन सुकला पक्ष की एकादशी के दिन से होली का वास्तिवक रंगमय रूप आरम्भ होता है जिसमे गाँव के लोग सफ़ेद कपडे पहन कर उसमे रंग दल कर होली में भाग लेते है एकादशी के दिन चीर बंधन होता है. इस दिन सामुहिक रूप से एक जगह चीर बांधा जाता है. इसके लिये “पैय्यां” या “पईंया” की टहनी का प्रयोग किया जाता है एक लम्बे डंडे में “पईंया” की टहनी को गोल रिंग की तरह बांध कर उस पर रंग बिरंगे कपडों की चीर बांधी जाती है. फिर चीर के साथ ही गाँव की ध्वजा (जिन्हें निशाण कहते है) जो लाल व सफ़ेद रंग की होती है उसे पूरे गाँव में ले जाकर उसकी पूजा की जाती है व होली का गायन होता है
2. महिला होली
महिला होली पुरुष होली की तरह ही होती है लेकिन इसमें महिलाए होली के गाने व न्रत्य करती है होली में स्वांग भी रचती है
जल कैसे भरूं जमुना गहरी, जल कैसे भरूं जमुना गहरी,
ठाड़े भरूं राजा राम देखत हैं, बैठी भरूं भीजे चुनरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी. धीरे चलूं घर सास बुरी है,
धमकि चलूं छ्लके गगरी. जल कैसे भरूं जमुना गहरी.
गोदी में बालक सर पर गागर, परवत से उतरी गोरी.
जल कैसे भरूं जमुना गहरी.
मुख्य होली की शुरुआत फाल्गुन मास की एकादसी से होती है. जिसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन भद्रा-रहित काल में देवी-देवताओं में रंग डालकर पुन: अपने कपड़ों में रंग छिड़कते हैं, और गुलाल डालते हैं. होली के लिये विशेष कपड़े बनवाये जाते हैं जो मुख्यत: सफेद रंग के होते हैं. पुरुष सफेद रंग के कुर्ता पायजामा पहनते हैं और कुछ लोग सर पर टोपी पहनते हैं .महिलाऎं सफेद धोती या सफेद सलवार कमीज पहनती हैं. एकादशी के दिन जब रंग पड़ता है तो इन्ही कपड़ो में रंग डाल दिया जाता है. यह कपड़े अब मुख्य होली के दिन तक बिना धोये पहने जाते हैं.
पूर्णमासी की रात्रि में होलिका दहन होता है यह होली की अंतिम रात्रि होती है दुसरे दिन प्रातः होली बिदा की जाती है जिस दिन देश-दुनिया के अन्य जगहों में होली मनायी जाती है उस दिन कुमाऊं में पानी और रंगो से होली खेली जाती है. इस दिन को “छलड़ी” कहा जाता है.