अश्विन कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष माना जाता है। धर्मशास्त्र के अनुसार जब कन्या राशि पर सूर्य पहुंचते हैं, वहां से १६ दिन पितरोंकी तृप्ति के लिए तर्पण पिण्डदानादि करना पितरोंके लिए तृप्तिकारक माना गया है।
जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो हिन्दू मान्यता के अनुसार जिस प्रकार हम पुराने कपडे उतर कर नए कपडे धारण करते है उसी प्रकार आत्मा भी नया सरीर धारण करती है आत्मा अमर है इसी कारण शरीर छोड़ते ही हिन्दू धर्मं के अनुसार शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है उसके बाद मृत आत्मा की शांति आदि कर उन्हें पिंड दान देकर अपने पूर्वजो से मिला दिया जाता है उसके बाद ही उस आत्मा को हम पितर के रूप में मानते है तथा उनका श्राद्ध आदि करते है
पितरों की तृप्ति से घर में पुत्र पौत्रादि वंश वृद्धि एवं गृहस्थाश्रम में सुख शांति बनी रहती है। श्राद्ध कर्म की आवश्यकता के सम्बंध में शास्त्रों में बहुधा प्रमाण मिलते हैं। गीता में भी भगवान् लुप्तपिण्डोदकक्रिया कहकर उसकी आवश्यकता की ओर संकेत किए हैं। कर्त्तव्याकर्त्तव्यके संबंध में शास्त्र ही प्रमाण है। इसलिए पितृ, देव, एवं मनुष्यों के लिए वेद शास्त्र को ही प्रमाण माना गया है,
मानव शरीर के दो भेद हैं। सूक्ष्म तथा स्थूल शरीर। पंच भौति कशरीर मरणोपरान्त नष्ट हो जाता है। सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ उस प्रकार जाता है, जिस प्रकार पुष्प का सुगन्ध वायु के साथ। जिन धर्मग्रन्थों में मरने के बाद गति का वर्णन है, उन्हें स्थूल शरीर के अतिरिक्त सूक्ष्म शरीर मानना पडेगा। सूक्ष्म शरीर को प्रभावित करने वाला सूक्ष्म तत्व ही होता है, जिसको स्थूल मानदण्ड से मापा नहीं जा सकता।
तर्पण
पितरो की आत्मा की शांति व दुसरे लोक में भी उन्हें किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए तिल कुश जो आदि से तर्पण किया जाता है तर्पण देव मनुष्य व पितर तीन प्रकार का होता है तर्पण. (देवताओं को तर्पण) पानी की पेशकश उंगलियों का प्रयोग किया जाता है , जबकि संतों के लिए पानी की पेशकश छोटी उंगली के आधार और तीसरी उंगली से किया जाता है और मृतक 'पूर्वजों की आत्माओं कि मध्य के माध्यम से किया जाना चाहिए अंगूठे की और हाथ की पहली उँगली. तर्पण एक मुट्ठी भर पानी (अंजलि) प्रत्येक देवता के लिए ले प्रदर्शन किया जाता है , दो संतों और तीन मृत पूर्वजों आत्माओं के लिए पानी की मुट्ठी भर के लिए पानी की मुट्ठी भर. (पानी की माँ दादी और महान दादी) तीन मुट्ठी भर के मामले में इस्तेमाल किया और अन्य महिलाओं पूर्वजों आत्माओं को पानी में से एक मुट्ठी भर के लिए चाहिए तर्पण के लिए इस्तेमाल किया जाता है
वेदों में आत्मा वे जायतेपुत्र: अर्थात पुत्र को आत्म-स्वरूप माना गया है। वैसे सजातीय धर्म का भी एक अपना महत्व है। मनुष्य-मनुष्य में, चुम्बक-चुम्बक में, तार-तार में आदि सजातीय धर्म सुदृढ रहता है। अत:इन सजातीय धर्म के आधार पर ही राजनीति में पिता के ऋण को पुत्र को चुकाना पडता है। पुत्र के ऋण को पिता को चुकाना पडता है। जिस प्रकार रेडियो स्टेशन से विद्युत तरंग से ध्वनि प्रसारित करने पर समान धर्म वाले केंद्र से ही उसे सुना जा सकता है, उसी प्रकार इस लोक में स्थित पुत्र रूपी मशीन के भी भावों को श्राद्ध में यथा स्थान स्थापित किए हुए आसन आदि की क्रिया द्वारा शुद्ध और अनन्य बनाकर उसके द्वारा श्राद्ध में दिए गए, अन्नादिकके सूक्ष्म परिणामों को स्थान्तरणकर पितृलोक में पितरोंके पास भेजा जाता है। सामान्य व्यवहार में लोगों द्वारा प्रयुक्त अपशब्द या सम्मान जनक शब्द अगर लोगों के मन को उद्वेलित या प्रसन्न कर सकता है, तो पवित्र वेद मंत्रों से अभिमन्त्रित शुद्ध भाव से समर्पित अन्नादिके सूक्ष्मांशपितृ लोगों को तृप्त क्यों नहीं कर सकता? अवश्य करता है।